सब सखी कसुम्बा छठही मनावो || .. (२)
अपने अपने भवन भवनमें
लालही लाल बनावो || १ ||

बिविध सुगंध उबटनों लेकें
लालन उबट न्हवावो ||
उपरना लाल कसुम्बी
कुल्हे आभूषण लाल धरावो || २ ||

यदि छबि निरख निरख
व्रज सुन्दरी मन मन मोड बढावे ||
लाल लकुटी कर मुरली बजावे
‘रसिक’ सदा गुन गावे || ३ ||