जय जय जय श्री वल्लभ प्रभु विट्ठलेश साथें
निजजन पर करत कृपा धरत हाथ माथें ||
दोष सब दूर करत भक्तिभाव हिये धरत
काज सब सरत सदा गावत गुणगाथें || १ ||
काहेको देह दमत साधन कर मुरख जन
विद्यमान आनंद त्यज चालत क्यूँ अपाथें |
रसिक चरण शरण सदा रहत हे बडभागी जन
अपनों कर गोकुलपति भरत ताहि बाथें || २ ||