जेंवन हरि बैठे कुंजन मांह || .. (२) बरखा आय अचानक बरखत, देख सघन बन छांह || १ ||
आये देख चहुँदिश मोहन ढूंढफिरी कंहु नांहि || कुंभनदास प्रभु गोवरधनधर करि बिचार मन मांहि || २ ||