दोऊ मिल पोढे एकही संग || … (२) सीयरी ब्यार झरोखन आवत करत केलि रसरंग || १ ||
गरजत गगन दामिनी कोंधत झलकत दोऊ अंग || ‘रसिक’ प्रीतम ललितादिक गावें मधुरी तान तरंग || २ ||