प्रिय नवनीत पालनें झूलें
श्रीविट्ठलनाथ झुलावें हो |
कबहुंक उतरी झुलावें हो || १ ||

कबहुंक सुरंग खिलौना लै लै
नाना भाँति खिलावैं |
चकरी बंकी फिरकनी लहेंटू
झुन झुन हाथ बजावै || २ ||

भोजन करत थार एक झारी
दोऊ मिलि खाय खवावैं |
गुप्त महा रस प्रकट जनावें
प्रीती नई उपजावें || ३ ||

धनि धनि भाग्य दास निज जनके
जो यह दर्शन पावें |
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल
निगम एक करि गावें || ४ ||