गिरिधर पीवत दूश शिराय |
बैठे अटा घटा देखन कों
छतना हाथ लगाए || १ ||

हरित भूमि प्रफुल्लित
द्रुमवेली रही तरुवर लापटाय |
तापर धरी सदल रस मंजरी
कृष्ण दास बल जाय || २ ||